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Showing posts from August, 2013

उड़ान...

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कभी कभी सोचती हूँ, पंछी बन जाऊं   , अनासक्त, तटस्थ, बंधन से मुक्त , उम्मीदों से दूर, कोई पहचान नहीं, किसी की यादों में भी नहीं,  पेड़ों की डालियों में झूलती शाम की गुनगुनी हवाओं में गोते लगाऊं, खुले आसमान के नीचे,  सितारों से बातें करती, इधर से उधर, बस उन्मुक्त उड़ती रहूँ , में चाहती हूँ  पंछी बन जाऊं ...                                 ...mamta 

बांवरा मन !!

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क्यों चंचल है ये मन..? क्यों भागता है ये मन? क्यों ठहरता  नहीं है तू , क्यों समझता नहीं है तू... घूमता है यादों में भूत की  ... उड़ता है सपनों में भविष्य के ... रोता है उस पर जो चला गया... पकड़ना चाहता है उसे जो तेरा है ही नहीं.... क्यों जीता नहीं इस पल को जो तेरे साथ है? अनदेखी  करता है वो ख़ुशी जो तेरे आसपास है.. बीते हुए कल  में है, न आने वाले कल में है  .. ख़ुशी तो बस वर्तमान के इस सुनहरे पल में है... क्यों ठहरता  नहीं है तू , क्यों समझता नहीं है तू...  ...mamta